क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है
क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है
जिंदगी रो रही है और मौत हंस रही है इन दोनों के बीच में,सांसे सिसक रही है आज हर तरफ बेबसी का आलम है क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है। बढ़ते बढ़ते मुसीबतें इतना बढ़ी कि मुस्कान भी मोहताज हो गई है हर रिश्ता यहां पर अब टूट रहा है क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है। आज मर्दानगी क्या मर गई है माता बहनें कांप रही है निरंतर अत्याचारों से अब गम इतनें है,जितना कभी सोंच ना पायेंगे क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है। चंद रुपयों के दहेज के खातिर एक निर्दोष को आग लगाते देखा है लोगों के एक भीड़ है, जिसमें अपना कोई नही है क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है। कितना बदल रहा है अब इंसान कुत्तों को पाला जाता है अंतर मन की व्यथा को मैं कैसे बताऊं गाय और बैल को खाया जाता है क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है। यह जन्म भूमि है धर्मो की यह कर्म भूमि है सतकर्मो की पर आज मौत को गले लगाने के लिए व्यक्तियों में उतावलापन दिख रहा है क्या यही सुर दुर्लभ मानव तन है।
नूतन लाल साहू
ऋषभ दिव्येन्द्र
28-May-2023 12:37 PM
बहुत खूब
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सीताराम साहू 'निर्मल'
28-May-2023 10:42 AM
👏👌
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